भारत की आधुनिक समस्याएँ पर निबंध

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Essay On Modern Problems Of India


रुपरेखा : पूर्व समस्याओं का विकराल रूप - आर्थिक समस्या - सरकार की समस्या - राजनीतिक समस्या - नौकरशाही की समस्या - सामाजिक समस्याएँ - बढ़ती जनसंख्या - उपसंहार ।

पूर्व समस्याओं का विकराल रूप

भारत की आधुनिक समस्याएँ उसकी पूर्व समस्याओं का विकराल रूप हैं और समाधान की दिशा में उठाए गए विवेकहीन और असंगत उपायों का दुष्परिणाम है । स्वार्थ और दलहित से प्रेरित आत्मघाती दृष्टिकोण का अभिशाप है और है नेतृत्व के बौनेपन का स्पष्ट उदाहरण है। आज की राजनीतिक समस्याएँ राष्ट्र को अस्थिरता की ओर धकेल रही हैं। आर्थिक समस्याएँ राष्ट्र की समृद्धि के मार्ग में बाधक बनी हुई हैं । सामाजिक समस्याओं ने समाज का जीना मुश्किल कर रखा है। उग्रवाद, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता भारत में नागरिकों से जीवन जीने का अधिकार छीन रही है । उद्योगों के क्षेत्र में आत्म -निर्भरता और स्वराज्य को विदेशी सहयोग की बैसाखी की जरूरत पड़ गई है । जनसंख्या का प्रतिदिन बढ़ना देश की समस्या बनती जा रही है।

सरकार की समस्या

भारत की सबसे बड़ी समस्या स्थिर केन्द्रीय सरकार की है। महानिर्वाचनों में किसी भी राष्ट्रीय दल को बहुमत न मिलना भारत के लिए अभिशाप है। इसका कारण, अल्पमत-सरकार देश की समस्याओं से सशक्त मनोबल से जूझने और प्रगति तथा समृद्धि की ओर अग्रसर होने में अक्षम हो गयी है। सरकार की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश में रोजगार की कमी बढ़ती जा रही है। आज देश में बेरोजगार की संख्या बढ़ती जा रही है। और दूसरी ओर देश की जनसँख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। जिससे साकार की परेशानी सातवे आसमान पर चले गयी है।

आर्थिक समस्या

आर्थिक समस्या आज प्रजा को अधिक परेशानी दे रही है। आज भारत विदेशों के अरबों रुपयों का कर्जदार हो चूका है। महँगाई हर दिन बढ़ रही है, जिसने मध्यवर्ग का जीना दुभर कर रखा है। देश का धनीवर्ग विदेशों में अपना धन रखकर भारत की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने पर लगा हुआ है। बड़े-बड़े आर्थिक घोटालों ने देश की अर्थ-नींव को हिला दिया है। काले धन के वर्चस्व ने देश की प्रतिष्ठा को ही काला कर रखा है।सरकारी क्षेत्र के उद्योग निरंतर करोड़ों रुपए का घाटा देकर आर्थिक स्थिति को जटिल बनाने पर तुले हैं । दूसरी ओर भारत की 60 प्रतिशत जनता गरीबी की सीमा-रेखा से नीचे जीवन जीने को विवश हो चुके है।

राजनीतिक समस्या

राजनीतिक समस्याओं ने देश के चित्र और चरित्र पर सवाल उठा दिया है। चरित्रविहीन राजनीति ने देश की दुर्गति करने में कसर नहीं छोड़ी । अपराधियों के राजनीतिकरण ने देश में 'चरित्र' की व्याख्या ही बदल दी है। संविधान में जाति, सम्प्रदाय, वर्ग-विशेष, प्रांत-विशेष के विशिष्ट अधिकार तथा संरक्षणवाद ने बिभाजन और विभेद का राक्षस खड़ा कर रखा है। नेतागण लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, पर कार्य किसी तानाशाह से कम का नहीं करते। भ्रष्ट और देश-द्रोही तत्त्व राजनीतिक आँचल में सुरक्षा पा रहे हैं। इसीलिए आज देश में राजनितिक समस्या का कोई समाधान नहीं निकल रहा है। आम जनता किस राजनितिक दल पर यकीन करें वे उन्हें समझ नहीं आ रहा।

नौकरशाही की समस्या

भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है नौकरशाही की अकर्मण्यता बन गयी है। राजकीय कर्मचारी चाहे वह किसी भी पद पर आसीन हो, कार्य को तत्काल और सुचारू रूप से करने में खुश नहीं होते। इसका परिणाम है, कार्यपालिका धीमी चाल से चल रही है, जो देश की सुचारुगति पर अर्ध विराम लगा रही है। ऊपर से भ्रष्टाचार ने कार्यपालिका को चुप होने में मजबूर कर दिया हैं। जिससे राष्ट्र की सुरक्षा और विकास पर सवाल उठने लगे है।

सामाजिक समस्याएँ

आज देश में अनेक सामाजिक समस्याएँ भी बढ़ती जा रही हैं | दहेज ने विवाह पूर्व और विवाहोपरांत जीवन में कैंसर पैदा कर दिया है। ऊँच-नीच के भेद-भाव ने समस्त समाज को ही दुर्बल बना दिया है। नारी के शोषण, उत्पीडन और बलात्कार ने देश को लांछित कर दिया है। समाज से अपनत्व की भावना समाप्त होती जा रही है। पुत्र में बैयक्तिक सुखोप-भोग की वृत्ति बढ़ रही है; इसलिए वह माता-पिता से विद्रोह पर उतर आया है। व्यक्तिगत अहं ने पारिवारिक जीवन को नष्ट कर दिया है। समाज में संवेदना ही समस्या बन गई है। आज का युवक सुरा, सुन्दरी तथा मादक पदार्थों के सेवन में आत्मविस्तृत हो रहा है | वह अपने शरीर पर अत्याचार कर रहे है। युवा पीढ़ी को इस आत्महत्या से बचाने की समस्या विराट्‌ और विनाशकारी की और ढकेल रही है। युवा पीढ़ी की यह बरबादी राष्ट्र को ही तबाह करने पर तुली है।

बढ़ती जनसंख्या

बढ़ती जनसंख्या भी भारत की गहन समस्या है । इसने देश के विकास कार्यो को बौना, जीवनयापन को अत्यन्त दुरूह तथा जीवन-शैली को उच्छुंखल और कुरूप बना दिया है। इसका परिणाम है, आज भारत की 60 प्रतिशत जनता गरीबी की सीमा-रेखा से नीचे जीवनयाएन करने को विवश हो चुके है। वह भूखे पेट को शांत करने के लिए असामाजिक कार्य करने लगे है। भारत के उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने, अपने पैरों पर खड़ा करने की भी समस्या है। कारण, विदेशी पूँजी और टेक्नीक भारतीय उद्योग को परतन्त्रता के लौह-पाश में जकड़ती जा रही हैं । आज विदेशी पूँजी और तकनीकी ने भारत में विदेशी बहुउद्देशीय कंपनियों का साम्राज्य स्थापित कर दिया है। भारत का कुटीर-उद्योग और लघु-उद्योग मर रहे हैं और औद्योगिक समूहों की आर्थिक स्थिति डगमगा रही है।

उपसंहार

आज भारत अनेक समस्याओं का घर बन गया है। वह समस्याओं से आहत है, पीड़ित है और घिरा हुआ है। इनका कारन है, समस्या की सही पहचान न होना और उस पर पकड़ न होना तथा सत्ता-पक्ष और राजनीतिज्ञों की गलत इरादे । आज भारत में समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है यही कारन है आज देश के नागरिक अपने ही देश में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। हर रोज एक नयी समस्या उनके दरवाजे पे आ क खड़ी हो जाती है। जो उनको दुर्बल बनाई जा रही है।

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